राज्य एवं जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों के अध्यक्ष और सदस्य नियुक्त किए जाने की प्रक्रिया पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने ऐतराज जताया है।
सीजेआई ने इन आयोगों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए भी लिखित परीक्षा पास करने की आवश्यकता को ‘दूर की कौड़ी’ बताया और केंद्र से इस संबंध में अपना जवाब दाखिल करने को कहा।
सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से एक हफ्ते के अंदर इस मुद्दे पर निर्देश प्राप्त करने को कहा।
संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करते हुए, शीर्ष अदालत ने 2023 के एक फैसले में निर्देश दिया था कि राज्य एवं जिला उपभोक्ता आयोगों के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति दो पत्रों (पेपर) वाले लिखित परीक्षा में उम्मीदवारों के प्रदर्शन के आधार पर की जाएगी।
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या पूर्व जिला न्यायाधीश को लिखित परीक्षा में शामिल होने के लिए कहना उपभोक्ता संरक्षण नियमों के उद्देश्यों को विफल करता है।
इसमें कहा गया है कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के कामकाज और फैसले चयन समिति के पास उपलब्ध हैं, जो उन्हें ऐसे उपभोक्ता संरक्षण मंचों के लिये नियुक्त करने से पहले उन पर विचार कर सकती है।
पीठ ने कहा, “यह (परीक्षा) दूर की कौड़ी है और उपभोक्ता संरक्षण नियमों के उद्देश्य को विफल करती है। पीठ ने कहा, “इस अदालत के 3 मार्च 2023 के फैसले में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत निर्देश जारी किया गया था कि राज्य आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों के पदों पर नियुक्तियां दो पेपर वाली लिखित परीक्षा के आधार पर की जानी चाहिए।
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि वह विशेष रूप से उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के लिए एक परीक्षा आयोजित करने की आवश्यकता पर केंद्र सरकार से निर्देश मांगेंगे।
” न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की सदस्यता वाली पीठ ने कहा, ”हम इसे आने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध करेंगे।”