नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पंजाब और हरियाणा सरकारों को पराली जलाने वाले किसानों से केवल नाममात्र का मुआवजा वसूलने पर कड़ी फटकार लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पराली जलाने के कारण दिल्ली की वायु गुणवत्ता गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है, जिससे दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। इसके साथ ही, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को भी सुप्रीम कोर्ट की आलोचना का सामना करना पड़ा।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि आयोग ने पराली जलाने की घटनाओं को रोकने में आवश्यक निर्देशों को लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि 29 अगस्त को हुई बैठक में सिर्फ 11 में से 5 सदस्य ही उपस्थित थे इतना ही नहीं बैठक में अदालत के निर्देशों पर चर्चा नहीं की गई।
कोर्ट ने कहा, जब तक लोग यह नहीं समझते कि उन्हें वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम के तहत गंभीर दंड का सामना करना पड़ेगा, तब तक पराली जलाना नहीं रुकेगी। यह आयोग की जिम्मेदारी है कि वहां प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे।
कोर्ट ने आयोग की स्थिति रिपोर्ट की समीक्षा कर कहा, आयोग केवल बैठकें आयोजित करने में व्यस्त है और अपने आदेशों को लागू करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है। न्यायाधीशों ने स्पष्ट किया कि आयोग को अधिनियम के तहत आपराधिक मामले दर्ज करने, जुर्माना लगाने और प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों को बंद करने का अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने आंकड़ों का हवाला देकर कहा कि 15 से 30 सितंबर के बीच पंजाब और हरियाणा में 129 अवैध पराली जलाने की घटनाएं हुईं। कोर्ट ने कहा कि केवल जुर्माना वसूलना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि अब आवश्यकता है कि इन्हें कानून के तहत जवाबदेह ठहराया जाए।
पंजाब सरकार ने बताया कि वहां किसानों को वैकल्पिक प्रोत्साहन प्रदान करने के बाद ही दंडात्मक कार्रवाई करेगी। राज्य के एडवोकेट जनरल ने कहा कि राज्य में 1.4 लाख से अधिक पराली हटाने वाली मशीनें उपलब्ध हैं, लेकिन छोटे किसानों को मशीनों के संचालन के लिए ड्राइवर और ईंधन की आवश्यकता है। इस मामले की अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी।
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