उज्जैन । सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों की विदाई की जाती है। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को ही सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध कर्म किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि 16 दिन के श्राद्ध के दौरान किसी व्यक्ति का श्राद्ध किसी कारण से छूट जाता है तो उन सभी का इसी दिन श्राद्ध किया जा सकता है। इसी मान्यता के चलते आज सुबह शिप्रा नदी के तट रामघाट और सिद्धवट सहित गया कोठा तीर्थ पर श्रद्धालु तर्पण और श्राद्ध कर्म करने पहुंचे। इस संबंध में जानकारी देते हुए पंडित सतीश नागर ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि जो लोग श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वजों का तर्पण और पिंडदान नहीं कर पाए, यदि वे अमावस्या तिथि पर तर्पण और पिंडदान करते हैं तो पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही, ऐसे लोग जिन्हें अपने पूर्वजों की तिथि की जानकारी नहीं है, वे भी इस तिथि पर तर्पण और पिंडदान कर सकते हैं। यही वजह है कि सुबह से ही शिप्रा तट पर लोग स्नान कर दान कर रहे हैं। इसके साथ ही साल की सबसे बड़ी अमावस्या पर हजारों श्रद्धालु पितरों की आत्मा की शांति के लिए भैरवगढ़ स्थित प्राचीन सिद्धवट पर दूध चढ़ाने उमड़े। वटवृक्ष पर श्रद्धालु मंदिर में लगे पीतल के पात्र के जरिए दूध चढ़ा सके। वहीं, इसी के साथ सर्वपितृ अमावस्या पर्व के साथ 15 दिनी श्राद्ध पक्ष आज समाप्त हो गया है।
आत्माओं से मुक्ति पाने के लिए लगाई डुबकी
केडी पैलेस पर शिप्रा नदी पर बने 52 कुंडों में बुरी आत्माओं से मुक्ति पाने के लिए लोग डुबकी लगाने पहुंचे। इस दौरान सबसे ज्यादा भीड़ केडी पैलेस पर रही, जहां बुरी आत्माओं से छुटकारा पाने के लिए भक्त शिप्रा नदी में डुबकी लगाते हुए दिखाई दिए।
सर्वपितृ अमावस्या का महत्व
सर्वपितृ अमावस्या के दिन आखिरी श्राद्ध किया जाता है। इस दिन सभी पितरों के नाम से श्राद्ध कर्म के कार्य किए जा सकते हैं। जिन परिजनों की श्राद्ध तिथि पता नहीं होती, उनके सभी नाम से भी श्राद्ध किया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण आदि के कार्य करने से पितरों का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।