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    छत्तीसगढ़

    गांवों में लौटी रौनक: सुरक्षा और विकास ने भरे खुशहाली के रंग

    By September 23, 2024No Comments6 Mins Read
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    गांवों में लौटी रौनक: सुरक्षा और विकास ने भरे खुशहाली के रंग
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    नियद नेल्लानार से बदल रही बस्तर की तस्वीर

    गांवों में लौटी रौनक: सुरक्षा और विकास ने भरे खुशहाली के रंग

    बस्तर

        प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बस्तर के लोग अपनी संस्कृति और विशेष परंपराओं के निर्वहन के लिए जाने जाते हैं। कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने खुशहाल जीवन जीने के लिए स्वयं को प्रकृति के अनुकूल बनाए रखा, अपने को संभाले रखा, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उनके खुशहाल जीवन को माओवादियों की नजर लग गई थी, नाच-गाना बंद हो गए, मांदर की थाप मंद पड़ गई, सड़कें सुनी हो गई और स्कूल बंद होने लगे। स्थानीय हाट बाजार भी बंद हो गये, जहां से स्थानीय लोग अपनी छोटी-छोटी जरूरतों की खरीदी करते थे। हर हाल में अपनी जीवन में खुशियों के रंग सहेजकर रखने वाले बस्तर के वनवासियों की जिंदगी धीरे धीरे बेरंग हो गई।

        माओवादी गतिविधियों के कारण शासन-प्रशासन द्वारा संचालित योजनाओं का समुचित लाभ भी अंदरुनी इलाकों में स्थानीय लोगों को नहीं मिल रहा था। इस सब समस्याओं से मुक्ति दिलाने के लिए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की सरकार द्वारा ‘‘नियद नेल्ला नार‘‘ (अपका अच्छा गांव) संचालित की जा रही है। जिसमें सुरक्षा कैम्पों के पांच किलोमीटर के दायरे वाले गांवों में केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ शतप्रतिशत हितग्राहियों तक पहुंचाने की मुहिम चलायी जा रही है। इसका असर भी देखने को मिल रहा है। स्थानीय हाट बाजार अब गुलजार होने लगे हैं। बंद पड़े हाट बाजार और स्कूल अब फिर से शुरू हो रहे हैं। जिससे बस्तर की तस्वीर बदलती जा रही है और बस्तर में पुनः रौनक लौटी है।

        आदिवासी क्षेत्रों में वामपंथी उग्रवाद को रोकने के लिए राज्य सरकार ने सुरक्षा और विकास की नीति को मूल मंत्र बनाया है, इसके सार्थक परिणाम दिख रहे हैं। इन इलाकों में रहने वाले लोगों को शासकीय योजनाओं का लाभ दिलाने के साथ-साथ उन्हें सभी जरूरी सुविधाएं भी दी जा रही है। बीते 9 महीनों के दौरान मुठभेड़ों में 156 माओवादियंों को ढेर किया गया। पिछले 6 महीने में 32 फारवर्ड सुरक्षा कैम्पों की स्थापना की गई। निकट भविष्य में दक्षिण बस्तर एवं माड़ में रि-डिप्लायमेंट द्वारा 29 नए कैम्पों की स्थापना भी प्रस्तावित है।

        नियद नेल्ला नार (आपका अच्छा गांव) योजना नक्सल प्रभावित इलाकों में गेम चेन्जर्स साबित हो रही है। माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में स्थापित नए कैम्पों के आसपास के 5 किलोमीटर के दायरे में आने वाले गांवों एवं ग्रामीणों को 17 विभागों की 59 हितग्राहीमूलक योजनाओं और 28 सामुदायिक सुविधाओं के तहत आवास, अस्पताल, पानी, बिजली, पुल-पुलिया, स्कूल इत्यादि मूलभूत संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री की पहल पर छत्तीसगढ़ के माओवादी आतंक प्रभावित जिलों के विद्यार्थियों को तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा के लिए ब्याज रहित ऋण मिलेगा।

        आदिवासी समुदाय की बसाहट ज्यादातर वनांचल क्षेत्रों में है। इन क्षेत्रों में सड़क नेटवर्क बढ़ाया जा रहा है। कई ऐसे हाट बाजार जो वीरान हो गए थे, वे अब पुनः गुलजार होने लगे हैं। माओवादी क्षेत्रों में बारहमासी सड़कें और पुल-पुलियों का निर्माण किया जा रहा है, जो दिलों को जोड़ने का काम कर रही है। अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में पक्की सड़कों के निर्माण, स्कूलों के नियमित रुप से खुलने, उचित मूल्य दुकानों के बेहतर संचालन से बस्तर की तस्वीर बदलने लगी है। केन्द्र सरकार द्वारा नगरनार में देश का सबसे बड़ा इस्पात संयंत्र भी शुरू किया गया है, इससे बस्तर अंचल के विकास को नई गति मिली है और लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

        बस्तर जिले के दरभा विकासखण्ड अंतर्गत ग्राम कलेपाल में बारहमासी सड़क का निर्माण किया गया है, बिजली पहुंच गयी है। यहां का साप्ताहिक बाजार जो बंद हो गया था, वह फिर से शुरु हो गया है। दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण से बस्तर जिले के कलेपाल गांव तक पक्की सड़क का निर्माण तेजी से किया जा रहा है। दरभा ब्लाक के अंतर्गत आने वाले ग्राम कोलेंग में बारहमासी सड़क का निर्माण हुआ है, बिजली पहुंची है, आंगनबाड़ी केन्द्र प्रारंभ हुआ है। लोहंडीगुड़ा विकासखण्ड के ग्राम बोदली में उचित मूल्य दुकान खोली गयी है तथा पहुंच मार्ग का निर्माण किया जा रहा है।

        सुकमा जिले के कोंटा विकासखंड अंतर्गत आने वाले गांव पूवर्ती में बनी राशन दुकान जल्द ही शुरू होगी। इस गांव में राशन दुकान नहीं होने के कारण यहां के लोगों को कई किलोमीटर दूर पैदल चल कर दूसरे गांव में राशन लेने जाना पड़ता है। अब गांव में ही राशन दुकान खुलने से ग्रामीणों को उनके ही गांव में राशन मिलने लगेगा। शासन-प्रशासन की पहुंच से कोंसो दूर बसा, यह गांव  दशकों से मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा था, लेकिन अब यहां शासन की योजनाएं पहुंचने लगी है।

    आखिर क्यों खास है पूवर्ती गांव

        सुकमा जिले के अंदरूनी व अतिसंवेदनशील क्षेत्र में बसा हुआ पूवर्ती गांव एक वक्त नक्सलियों का सबसे सुरक्षित ठिकाना हुआ करता था। एक करोड़ रूपए का ईनामी नक्सली हिड़मा तथा टेकलगुड़ा कैंप निर्माण के दौरान नक्सली हमले की घटना का मास्टरमाइंड देवा का यह पैतृक गांव होने के कारण हमेंशा चर्चा में रहा है। माओवादियों का प्रभाव में होने के कारण पूवर्ती गांव में शासन की योजनाएं नहीं पहुंच पा रही थी, लेकिन अब इस गांव में सुरक्षा कैम्प खुलने से यहां के लोगों को तेजी से मूलभूत सुविधाएं सुलभ होने लगी है।

        नियद नेल्ला नार योजना का ही यह परिणाम है कि सुकमा जिले के अंदरूनी क्षेत्र के गांव नवापारा एल्मागुंडा में डीटीएच का इंस्टालेशन किया गया है, जिसका लाभ बच्चों के साथ-साथ ग्रामीण भी उठा रहे हैं। मनोरंजन के साथ ही वे देश-प्रदेश की खबरों से भी रूबरू हो रहे हैं। मोबाइल टॉवर लगने से ग्रामीण अब शासकीय योजनाओं की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं।

        नियद नेल्ला नार योजना के चलते ही नारायणपुर जिले के ओरछा विकासखण्ड के गांवों में प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत् 12 हितग्राहियों के मकान बनाने का काम पूर्ण हो चुका है। आंगनबाड़ी केन्द्रों में यहां के बच्चों को पूरक-पोषण आहार के साथ ही स्कूल पूर्व प्राथमिक शिक्षा मिलेगी। ग्राम मसपुर में नया उचित मूल्य दुकान भी स्थापित किया गया है, जिससे यहां के ग्रामीणों को अब अपने गांव में ही राशन सामग्री प्राप्त होगी। गांव में शुद्ध पेजयल उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए हैण्डपंप के स्थापना भी तेजी से की जा रही है। कोहकामेटा से कानागांव तक और आकाबेड़ा से कलमानार तक सड़क का निर्माण किया जाएगा।

        बीजापुर जिले के चिक्कापल्ली में नियद नेल्ला नार योजना के तहत प्राथमिक शाला भवन और आंगन बाड़ी भवन का निर्माण प्रक्रियाधीन है। उचित मूल्य दुकान खोलने के लिए गांव में भवन बनाया जा रहा है। पेयजल सुविधा के लिए सोलर ड्यूल पंप स्थापित किया गया है। इसी प्रकार उड़तामल्ला पंचायत के ग्राम यमपुर में ग्रामीणों के लिए 08 नग बोर खनन, सोलर हाई मास्ट की स्थापना की गई है। गांव में प्राथमिक शाला भवन, आंगनबाड़ी भवन, उचित मूल्य की दुकान का भी निर्माण किया जा रहा है। अतिसंवेदनशील इलाके के इन गांवों की यह बदलती तस्वीर, बदलते बस्तर की बानगी है।

     

    आलेख-सुरेन्द्र कुमार ठाकुर, संयुक्त संचालक, जनसंपर्क

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