नेपाल का केंद्रीय बैंक, नेपाल राष्ट्र बैंक, एक बड़े कदम के तहत अगले वर्ष के भीतर नए बैंकनोट्स छापने की योजना पर आगे बढ़ रहा है।
इन नोट्स में भारत के साथ विवादित क्षेत्रों को शामिल किया जाएगा। यह जानकारी मंगलवार को एक मीडिया रिपोर्ट के माध्यम से सामने आई।
नेपाल के इस कदम का उद्देश्य कालापानी, लिपुलेख, और लिम्पियाधुरा जैसे क्षेत्रों को अपने देश के हिस्से के रूप में दर्शाना है, जो लंबे समय से भारत और नेपाल के बीच विवाद का विषय रहे हैं।
नेपाल राष्ट्र बैंक के संयुक्त प्रवक्ता दिलीराम पोखरेल के अनुसार, बैंक ने इस दिशा में प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह निर्णय 3 मई को तत्कालीन प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल ‘प्रचंड’ के नेतृत्व में मंत्रिमंडल द्वारा लिया गया था।
पोखरेल ने कहा, “बैंक ने पहले ही नए नोटों की छपाई की प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया है।” उन्होंने कहा कि यह कार्य छह महीने से एक साल के भीतर पूरा हो जाएगा।
विवादित नक्शा पास कर चुका है नेपाल
मई 2020 में, के पी शर्मा ओली की सरकार के दौरान, नेपाल ने एक नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था, जिसमें लिपुलेख, कालापानी, और लिम्पियाधुरा को अपने क्षेत्र के रूप में दिखाया गया था।
इस नए नक्शे को नेपाल की संसद ने भी अप्रूव किया था और इसके बाद इसे सभी आधिकारिक दस्तावेजों में पुराने नक्शे की जगह लागू कर दिया गया था। इस कदम के बाद भारत ने कड़ा विरोध दर्ज कराया, क्योंकि यह क्षेत्र भारत के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
भारत और नेपाल 1,850 किलोमीटर से अधिक लंबी की सीमा साझा करते हैं, जो सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, और उत्तराखंड जैसे पांच भारतीय राज्यों से लगी हुई है। नेपाल के इस नए कदम से दोनों देशों के बीच पहले से ही संवेदनशील मुद्दों पर और तनाव बढ़ सकता है।
इतिहास और विवाद की पृष्ठभूमि
भारत और नेपाल के बीच कालापानी, लिपुलेख, और लिम्पियाधुरा क्षेत्रों पर लंबे समय से विवाद चल रहा है।
1815 में हुई सुगौली संधि के बाद, नेपाल और ब्रिटिश भारत के बीच सीमा निर्धारित की गई थी, लेकिन संधि के बाद भी इन क्षेत्रों की सीमा पर स्पष्टता नहीं रही। नेपाल का दावा है कि ये क्षेत्र उसकी सीमाओं के भीतर आते हैं, जबकि भारत इन्हें उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा मानता है।
कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा का विवाद मुख्य रूप से तब फिर से चर्चा में आया जब भारत ने 2019 में लिपुलेख से होकर मानसरोवर जाने वाले एक नए सड़क मार्ग का उद्घाटन किया।
इस कदम के बाद नेपाल ने विरोध जताया और एक नया राजनीतिक नक्शा जारी किया, जिसमें इन क्षेत्रों को अपने हिस्से के रूप में दिखाया गया।
नेपाल द्वारा मानचित्र जारी करने के बाद भारत ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे ‘‘एकतरफा कार्रवाई’’ बताया था और काठमांडू को आगाह किया कि क्षेत्रीय दावों का ऐसा ‘‘मनगढ़ंत विस्तार’’ उसे स्वीकार्य नहीं है। भारत का कहना रहा है कि लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा उसके क्षेत्र हैं।
भारत-नेपाल संबंधों पर असर
नेपाल का यह कदम दोनों देशों के बीच संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। भारत और नेपाल के बीच गहरे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध होने के बावजूद, पिछले कुछ वर्षों में सीमा विवाद ने दोनों देशों के रिश्तों में खटास ला दी। नेपाल के नए बैंकनोट्स में विवादित क्षेत्रों को शामिल करना, इन तनावों को और बढ़ा सकता है।
जून में नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल ‘प्रचंड’ ने कहा था कि उनकी सरकार इस बात पर स्पष्ट और दृढ़ है कि लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपु दर्रा सहित महाकाली नदी के पूर्व के सभी क्षेत्र उनके देश का हिस्सा हैं।
प्रचंड ने प्रतिनिधि सभा में विनियोग विधेयक, 2081 पर चर्चा के दौरान सांसदों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का जवाब देते हुए यह टिप्पणी की थी।
उन्होंने याद दिलाया कि 1816 में नेपाल और ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार के बीच हुई सुगौली संधि के अनुसार, ये क्षेत्र नेपाल के हैं और इन क्षेत्रों को शामिल करते हुए एक राजनीतिक नक्शा भी प्रकाशित किया गया है।
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