भारतीय टीम इस बार ओलिंपिक में पांच नए प्लेयर्स के साथ गई है और शायद इस वजह से सही कॉम्बिनेशन निकाल पाना भी शायद मुश्किल हो रहा है। तोक्यो ओलिंपिक 2024 में जीते ब्रॉन्ज मेडल ने भारतीय हॉकी को एक बार फिर से जिंदा करने का काम किया है। भारत का पहला मुकाबला न्यूजीलैंड से है, इनसे पिछली टक्कर बीते साल भुवनेश्वर में आयोजित वर्ल्ड कप में हुई थी। तब भारत पेनल्टी शूटआउट में हारा था। वैसे ओलिंपिक जैसे महाआयोजन में टीमों के पिछले आंकड़ें ज्यादा मायने नहीं रखते। इस बात का महत्व होता है कि हम पॉजिटिव माइंड सेट के साथ पूरा मैच खेलें और आखिर तक अपना दमखम कायम रखें।
पहले मैच में जीत जरूरी
किसी भी इवेंट में पहला मैच बहुत अहम होता है। हमारी टीम को अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत होगी और वह पहले मुकाबले में जीत से मिल सकती है। प्लेयर्स को इस मानसिकता के साथ उतरना होगा कि न्यूजीलैंड को हम हराएंगे। खुद पर आत्मविश्वास रखने की जरूर है। भारत के ग्रुप में ऑस्ट्रेलिया और बेल्जियम जैसी मजबूत टीमें भी हैं, लेकिन एक अच्छी बात यह है कि भारत के शुरुआती मुकाबले इनसे नहीं हैं। न्यूजीलैंड से यदि पार पा गए तो फिर अर्जेंटीना और आयरलैंड सामने होंगे। हम शुरुआती तीन मैच में ही जीत के साथ नॉकआउट के लिए अपनी जगह पक्की कर सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो फिर हमारे लड़के खुल कर खेल सकते हैं। कोशिश ग्रुप में ज्यादा से ज्यादा ऊपर रहने की होगी ताकि नॉक आउट में दूसरे ग्रुप की थोड़ी कमजोर टीम से ही सामना हो।
शमा बुझनी नहीं चाहिए
मुकाबले में प्लेयर्स की फिटनेस और जज्बे का भी अहम रोल रहेगा। गेम के पेस को बनाए रखने के लिए पूरी तरह से फिट होना भी जरूरी है। पहले क्वॉर्टर और अंतिम क्वॉर्टर के दौरान प्लेयर्स का पेस एक समान रहने की जरूरत है। मैच आगे बढ़ने के साथ शमा बुझनी नहीं चाहिए, शमा की रौशनी बढ़ती जाए। मतलब थकान हावी ना होने पाए। थकान का इलाज डिटरमिनेशन है। तोक्यो में भी हमारे हाथ से ब्रॉन्ज फिसल रहा था लेकिन लड़कों ने जज्बा दिखाया, डिटरमिनेशन दिखाया और इतिहास रच दिया। पेरिस में भी तोक्यो वाला जज्बा चाहिए होगा। अगर लड़कों में डिटरमेशन है तो बात बन जाएगा। हालांकि मैं फिर कहूंगा कि अभी ही कोई भी भविष्यवाणा करना सही नहीं होगा। फिर भी यदि हम सेमीफाइनल तक का सफर कर लेते हैं तो हमारे लिए बड़ी बात होगी।
यह मामला थोड़ा रिस्की है
हम इस ओलिंपिक में पांच नए प्लेयर्स के साथ गए हैं और शायद इस वजह से सही कॉम्बिनेशन निकाल पाना भी शायद मुश्किल हो रहा है। दरअसल हम बैकअप के मामले में भी थोड़ा कमजोर नजर आ रहे हैं। प्लेयर्स के रिप्लेसमेंट बराबरी के नहीं हैं। इन सबके अलावा सिर्फ एक गोलकीपर श्रीजेश के साथ जाना भी थोड़ा रिस्की मामला है। हालांकि, यूरोपीय देश बड़े टूर्नामेंटों में सिर्फ एक गोलकीपर के साथ उतरते रहे हैं, लेकिन भारत के लिए यह नया है।